आ रही रवि की सवारी

चाहता, उछलूँ विजय कह, पर ठिठकता देखकर यह- रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी ...

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हरिवंशराय बच्चन

आ रही रवि की सवारी।

 

नव-किरण का रथ सजा है,

कलि-कुसुम से पथ सजा है,

बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी।

आ रही रवि की सवारी।

 

विहग, बंदी और चारण,

गा रहे हैं कीर्ति-गायन,

छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी।

आ रही रवि की सवारी।

 

चाहता, उछलूँ विजय कह,

पर ठिठकता देखकर यह-

रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।

आ रही रवि की सवारी।


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