मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम

श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ वाणी में है गीता का स्वर। ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम। मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम ...

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भगवतीचरण वर्मा

मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम

ऐ अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम,

मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

तेरे उर में शायित गांधी, 'बुद्ध औ' राम,

मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

 

हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक,

तेरे चरण चूमता सागर,

श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ

वाणी में है गीता का स्वर।

ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।

मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

 

हरे-भरे हैं खेत सुहाने,

फल-फूलों से युत वन-उपवन,

तेरे अंदर भरा हुआ है

खनिजों का कितना व्यापक धन।

मुक्त-हस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम।

मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

 

प्रेम-दया का इष्ट लिए तू,

सत्य-अहिंसा तेरा संयम,

नयी चेतना, नयी स्फूर्ति-युत

तुझमें चिर विकास का है क्रम।

चिर नवीन तू, ज़रा-मरण से -

मुक्त, सबल उद्दाम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

 

एक हाथ में न्याय-पताका,

ज्ञान-द्वीप दूसरे हाथ में,

जग का रूप बदल दे हे माँ,

कोटि-कोटि हम आज साथ में।

गूँज उठे जय-हिंद नाद से -

सकल नगर औ' ग्राम, मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।

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