ख़ामोश हो क्यों दाद-ए-ज़फ़ा क्यूँ नहीं देते

रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते ...


 

ख़ामोश हो क्यों दाद-ए-ज़फ़ा[1] क्यूँ नहीं देते 

बिस्मिल[2] हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते 

 

वहशत[3] का सबब रोज़न-ए-ज़िन्दाँ[4] तो नहीं है 

मेहर-ओ-महो-ओ-अंजुम[5] को बुझा क्यूँ नहीं देते 

 

इक ये भी तो अन्दाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ[6] है 

ऐ चारागरो![7] दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते 

 

मुंसिफ़[8] हो अगर तुम तो कब इन्साफ़ करोगे 

मुजरिम[9] हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते 

 

रहज़न[10] हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ[11] भी 

रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते 

 

क्या बीत गई अब के "फ़राज़" अहल-ए-चमन[12] पर 

यारान-ए-क़फ़स[13] मुझको सदा[14] क्यूँ नहीं देते

 

 

शब्दार्थ:

1. अन्याय की प्रशंसा

2. घायल

3. भय, त्रास

4. जेल का छिद्र

5. सूर्य, चाँद और तारे

6. जीवन के दुखों का इलाज

7. वैद्यो,चिकित्सको

8. न्यायाधीश

9. अपराधी

10. लुटेरा

11. दिल और जान की पूँजी

12. चमन वाले

13. जेल के साथी

14. आवाज़

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