मौन और शब्द

सुना, मेरा वह बोलना दुनियाँ में काव्य कहलाया था ...

Harivanshrai 600x350.jpg

हरिवंशराय बच्चन

एक दिन मैंने

मौन में शब्द को धँसाया था

और एक गहरी पीड़ा,

एक गहरे आनंद में,

सन्निपात-ग्रस्त सा,

विवश कुछ बोला था;

सुना, मेरा वह बोलना

दुनियाँ में काव्य कहलाया था।

 

आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ,

अब न पीड़ा है न आनंद है

विस्मरण के सिन्धु में

डूबता सा जाता हूँ,

देखूँ,

तह तक

पहुँचने तक,

यदि पहुँचता भी हूँ, 

क्या पाता हूँ।

DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image