रे पपीहे पी कहाँ

रे पपीहे पी कहाँ? खोजता तू इस क्षितिज से उस क्षितिज तक शून्य अम्बर, लघु परों से नाप सागर

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महादेवी वर्मा

प्यास ही जीवन, सकूँगी तृप्ति में मैं जी कहाँ? ...]



रे पपीहे पी कहाँ?

 

खोजता तू इस क्षितिज से उस क्षितिज तक शून्य अम्बर,

लघु परों से नाप सागर;

 

नाप पाता प्राण मेरे

प्रिय समा कर भी कहाँ?

 

हँस डुबा देगा युगों की प्यास का संसार भर तू,

कण्ठगत लघु बिन्दु कर तू!

 

प्यास ही जीवन, सकूँगी

तृप्ति में मैं जी कहाँ?

 

चपल बन बन कर मिटेगी झूम तेरी मेघवाला!

मैं स्वयं जल और ज्वाला!

 

दीप सी जलती न तो यह 

सजलता रहती कहाँ?

 

साथ गति के भर रही हूँ विरति या आसक्ति के स्वर,

मैं बनी प्रिय-चरण-नूपुर!

 

प्रिय बसा उर में सुभग!

सुधि खोज की बसती कहाँ?

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