प्रेयसी

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उक्ति

कुछ न हुआ, न हो मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो! मेरे नभ के बादल यदि न कटे- चन्द्र रह गया ढका, तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे लेश गगन-भास का, रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम हाथ यदि गहो। बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा-- मन्द सबों ने कहा, मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा-- ज्ञान, जहाँ का रहा, रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम कथा यदि कहो।

Bhagwati charan verma 275x153.jpg

तुम मृगनयनी

तुम मृगनयनी, तुम पिकबयनी तुम छवि की परिणीता-सी, अपनी बेसुध मादकता में भूली-सी, भयभीता सी ।   तुम उल्लास भरी आई हो तुम आईं उच्छ्‌वास भरी, तुम क्या जानो मेरे उर में कितने युग की प्यास भरी ।   शत-शत मधु के शत-शत सपनों की पुलकित परछाईं-सी, मलय-विचुम्बित तुम ऊषा की अनुरंजित अरुणाई-सी ;   तुम अभिमान-भरी आई हो अपना नव-अनुराग लिए, तुम क्या जानो कि मैं तप रहा किस आशा की आग लिए ।   भरे हुए सूनेपन के...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

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