उक्ति

कुछ न हुआ, न हो मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो ...

Suryakant tripathi nirala 600x350.jpg

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

कुछ न हुआ, न हो

मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल

पास तुम रहो!

मेरे नभ के बादल यदि न कटे-

चन्द्र रह गया ढका,

तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे

लेश गगन-भास का,

रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम

हाथ यदि गहो।

बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा--

मन्द सबों ने कहा,

मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा--

ज्ञान, जहाँ का रहा,

रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम

कथा यदि कहो।

DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image