कविताएँ

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मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!

[ सीमा ही लघुता का बन्धन है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन ...] मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! तारे शीतल कोमल नूतन माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं हाय, न जल पाया तुझमें मिल! सिहर-सिहर मेरे दीपक जल! जलते नभ में देख असंख्यक स्नेह-हीन...

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह

तुम्हारे बिना आरती का दीया यह न बुझ पा रहा है न जल पा रहा है। भटकती निशा कह रही है कि तम में दिए से किरन फूटना ही उचित है, शलभ चीखता पर बिना प्यार के तो विधुर सांस का टूटना ही उचित है, इसी द्वंद्व में रात का यह मुसाफिर  न रुक पा रहा है, न चल पा रहा है। तुम्हारे बिना आरती का दिया यह न बुझ पा रहा है, न जल पा रहा है।  मिलन ने कहा था कभी मुस्करा कर हँसो फूल बन विश्व-भर को हँसाओ, मगर कह रहा है विरह अब सिसक कर झरा रात-दिन अश्रु के शव...

स्वप्न से किसने जगाया?

स्वप्न से किसने जगाया? मैं सुरभि हूं।  छोड कोमल फूल का घर, ढूंढती हूं निर्झर। पूछती हूं नभ धरा से- क्या नहीं र्त्रतुराज आया? मैं र्त्रतुओं में न्यारा वसंत, मैं अग-जग का प्यारा वसंत। मेरी पगध्वनी सुन जग जागा, कण-कण ने छवि मधुरस मांगा। नव जीवन का संगीत बहा, पुलकों से भर आया दिगंत। मेरी स्वप्नों की निधि अनंत, मैं र्त्रतुओं में न्यारा वसंत।

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गोधूली अब दीप जगा ले

गोधूली, अब दीप जगा ले! नीलम की निस्मीम पटी पर, तारों के बिखरे सित अक्षर, तम आता हे पाती में, प्रिय का आमन्त्र स्नेह-पगा ले! कुमकुम से सीमान्त सजीला, केशर का आलेपन पीला, किरणों की अंजन-रेखा  फीके नयनों में आज लगा ले! इसमें भू के राग घुले हैं, मूक गगन के अश्रु घुले है, रज के रंगों में अपना तू झीना सुरभि-दुकूल रँगा ले! अब असीम में पंख रुक चले, अब सीमा में चरण थक चले, तू निश्वास भेज इनके हित दिन का अन्तिम हास मँगा ले! किरण-नाल पर घन के...

Amir khusro 275x153.jpg

बहुत कठिन है डगर पनघट की

  बहुत कठिन है डगर पनघट की। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी मेरे अच्छे निज़ाम पिया। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी ज़रा बोलो निज़ाम पिया। पनिया भरन को मैं जो गई थी। दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी। बहुत कठिन है डगर पनघट की। खुसरो निज़ाम के बल-बल जाइए। लाज राखे मेरे घूँघट पट की। कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी बहुत कठिन है डगर पनघट की।

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिये

है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए दिल जवां, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब् भी जवाँ तुझको मुझसे...

Daag 275x153.jpg

इस अदा से वो वफ़ा करते हैं

इस अदा से वो वफ़ा करते हैं कोई जाने कि वफ़ा करते हैं हमको छोड़ोगे तो पछताओगे हँसने वालों से हँसा करते हैं ये बताता नहीं कोई मुझको दिल जो आ जाए तो क्या करते हैं हुस्न का हक़ नहीं रहता बाक़ी हर अदा में वो अदा करते हैं किस क़दर हैं तेरी आँखे बेबाक इन से फ़ित्ने भी हया करते हैं इस लिए दिल को लगा रक्खा है इस में दिल को लगा रक्खा है 'दाग़' तू देख तो क्या होता है जब्र पर जब्र किया करते हैं

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

रेखा

यौवन के तीर पर प्रथम था आया जब श्रोत सौन्दर्य का, वीचियों में कलरव सुख चुम्बित प्रणय का था मधुर आकर्षणमय, मज्जनावेदन मृदु फूटता सागर में। वाहिनी संसृति की आती अज्ञात दूर चरण-चिन्ह-रहित स्मृति-रेखाएँ पारकर, प्रीति की प्लावन-पटु, क्षण में बहा लिया— साथी मैं हो गया अकूल का, भूल गया निज सीमा, क्षण में अज्ञानता को सौंप दिये मैंने प्राण बिना अर्थ,--प्रार्थना के। तापहर हृदय वेग लग्न एक ही स्मृति में; कितना अपनाव?— प्रेमभाव बिना भाषा का,...

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

अमर राष्ट्र

छोड़ चले, ले तेरी कुटिया, यह लुटिया-डोरी ले अपनी, फिर वह पापड़ नहीं बेलने; फिर वह माल पडे न जपनी। यह जागृति तेरी तू ले-ले, मुझको मेरा दे-दे सपना, तेरे शीतल सिंहासन से सुखकर सौ युग ज्वाला तपना। सूली का पथ ही सीखा हूँ, सुविधा सदा बचाता आया, मैं बलि-पथ का अंगारा हूँ, जीवन-ज्वाल जलाता आया। एक फूँक, मेरा अभिमत है, फूँक चलूँ जिससे नभ जल थल, मैं तो हूँ बलि-धारा-पन्थी, फेंक चुका कब का गंगाजल। इस चढ़ाव पर चढ़ न सकोगे, इस उतार से जा...

Amir khusro 275x153.jpg

पहेलियाँ

१. तरवर से इक तिरिया उतरी उसने बहुत रिझाया बाप का उससे नाम जो पूछा आधा नाम बताया आधा नाम पिता पर प्यारा बूझ पहेली मोरी अमीर ख़ुसरो यूँ कहेम अपना नाम नबोली उत्तर—निम्बोली २. फ़ारसी बोली आईना, तुर्की सोच न पाईना हिन्दी बोलते आरसी, आए मुँह देखे जो उसे बताए  उत्तर—दर्पण ३. बीसों का सर काट लिया ना मारा ना ख़ून किया  उत्तर—नाखून ४. एक गुनी ने ये गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना।  देखो जादूगर का कमाल, डारे हरा निकाले लाल।।  ...

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कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

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