समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का

अश्क आँखों में आ जाएँ एवज़ नींद के साहब ऐसा भी किसी शब सुनो अफ़साना किसी का ...

Akbar allahabadi 600x350.jpg

अकबर इलाहाबादी

समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का 
'अकबर' ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का 

गर शैख़-ओ-बहरमन[1] सुनें अफ़साना किसी का 
माबद[2] न रहे काबा-ओ-बुतख़ाना[3] किसी का 

अल्लाह ने दी है जो तुम्हे चाँद-सी सूरत
रौशन भी करो जाके सियहख़ाना[4] किसी का 

अश्क आँखों में आ जाएँ एवज़[5] नींद के साहब 
ऐसा भी किसी शब सुनो अफ़साना किसी का 

इशरत[6] जो नहीं आती मेरे दिल में, न आए 
हसरत ही से आबाद है वीराना किसी का

करने जो नहीं देते बयां हालत-ए-दिल को 
सुनिएगा लब-ए-ग़ौर[7] से अफ़साना किसी का 

कोई न हुआ रूह का साथी दम-ए-आख़िर
काम आया न इस वक़्त में याराना किसी का 

हम जान से बेज़ार[8] रहा करते हैं 'अकबर' 
जब से दिल-ए-बेताब है दीवाना किसी का


शब्दार्थ:

  1.  धर्मोपदेशक
  2.  पूजा का स्थान
  3.  काबा और मंदिर
  4.  अँधेरे भरा कमरा
  5.  बदले में
  6.  धूमधाम
  7.  ध्यान से
  8.  ना-खुश


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