कविताएँ

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तुम्हारी प्रेम-वीणा का अछूता तार मैं भी हूँ

तुम्हारी प्रेम-वीणा का अछूता तार मैं भी हूँ मुझे क्यों भूलते वादक विकल झंकार मैं भी हूँ मुझे क्या स्थान-जीवन देवता होगा न चरणों में तुम्हारे द्वार पर विस्मृत पड़ा उपहार मैं भी हूँ बनाया हाथ से जिसको किया बर्बाद पैरों से विफल जग में घरौंदों का क्षणिक संसार मैं भी हूँ खिला देता मुझे मारूत मिटा देतीं मुझे लहरें जगत में खोजता व्याकुल किसी का प्यार मैं भी हूँ कभी मधुमास बन जाओ हृदय के इन निकुंजों में प्रतिक्षा में युगों से जल रही पतझाड़...

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चिड़ियाँ

पीपल की ऊँची डाली पर बैठी चिड़िया गाती है । तुम्हें ज्ञात अपनी बोली में क्या संदेश सुनाती है ? चिड़िया बैठी प्रेम-प्रीति की रीति हमें सिखलाती है । वह जग के बंदी मानव को मुक्ति-मंत्र बतलाती है । वन में जितने पंछी हैं- खंजन, कपोत, चातक, कोकिल, काक, हंस, शुक, आदि वास करते सब आपस में हिलमिल । सब मिल-जुलकर रहते हैं वे, सब मिल-जुलकर खाते हैं । आसमान ही उनका घर है, जहाँ चाहते, जाते हैं । रहते जहाँ, वहीं वे अपनी दुनिया एक बनाते हैं । दिनभर...

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हमारा देश

हमारा देश भारत है नदी गोदावरी गंगा. लिखा भूगोल पर युग ने हमारा चित्र बहुरंगा.   हमारी देश की माटी अनोखी मूर्ति वह गढ़ती. धरा क्या स्वर्ग से भी जो गगन सोपान पर चढ़ती.   हमारे देश का पानी हमें वह शक्ति है देता. भरत सा एक बालक भी पकड़ वनराज को लेता.   जहां हर सांस में फूले सुमन मन में महकते हैं. जहां ऋतुराज के पंछी मधुर स्वर में चहकते हैं.   हमारी देश की धरती बनी है अन्नपूर्णा सी. हमें अभिमान है इसका कि हम इस देश...

Gopalsinghnepali 275x153.jpg

सरिता

यह लघु सरिता का बहता जल कितना शीतल¸ कितना निर्मल¸ हिमगिरि के हिम से निकल-निकल¸ यह विमल दूध-सा हिम का जल¸ कर-कर निनाद कल-कल¸ छल-छल बहता आता नीचे पल पल  तन का चंचल मन का विह्वल। यह लघु सरिता का बहता जल।। निर्मल जल की यह तेज़ धार करके कितनी श्रृंखला पार बहती रहती है लगातार गिरती उठती है बार बार रखता है तन में उतना बल यह लघु सरिता का बहता जल।। एकांत प्रांत निर्जन निर्जन यह वसुधा के हिमगिरि का वन रहता मंजुल मुखरित क्षण क्षण...

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हम दीवानों की क्या हस्ती

हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले   आए बनकर उल्लास कभी, आँसू बनकर बह चले अभी सब कहते ही रह गए, अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले   किस ओर चले? मत ये पूछो, बस चलना है इसलिए चले जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले   दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हँसे और फिर कुछ रोए छक कर सुख-दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले   हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर...

Gopalsinghnepali 275x153.jpg

भाई - बहन

तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ, तू बन जा हहराती गँगा, मैं झेलम बेहाल बनूँ, आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूँ लाल बनूँ, तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूँ, यहाँ न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला, ...तू आँगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरे वाला । बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं, तू ममता की गोद बनी, मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी, मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी, भाई की गति, मति भगिनी...

Ramanath awasthi 275x153.jpg

उस समय भी

जब हमारे साथी-संगी हमसे छूट जाएँ जब हमारे हौसलों को दर्द लूट जाएँ जब हमारे आँसुओं के मेघ टूट जाएँ   उस समय भी रुकना नहीं, चलना चाहिए, टूटे पंख से नदी की धार ने कहा ।   जब दुनिया रात के लिफाफे में बंद हो जब तम में भटक रही फूलों की गंध हो जब भूखे आदमियों औ' कुत्तों में द्वन्द हो   उस समय भी बुझना नहीं जलना चाहिए, बुझते हुए दीप से तूफ़ान ने कहा ।

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सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं  सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से  सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं  सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी  सो हम भी उसकी गली से गुज़र के देखते हैं  सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़  सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं  सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं  ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं  सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है  सितारे...

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बाबुल तुम बगिया के तरुवर

बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे  दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे  उड़ जाएँ तो लौट न आयें, ज्यों मोती की लडियां रे  बाबुल तुम बगिया के तरुवर ……. आँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के घर की कन्या बन का पंछी, फिरें न डाली से उड़के  बाजी हारी हुई त्रिया की  जनम -जनम सौगात पिया की  बाबुल तुम गूंगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे  उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लडियाँ रे  हमको सुध न जनम के पहले ,...

गरमियों की शाम

आँधियों ही आँधियों में उड़ गया यह जेठ का जलता हुआ दिन, मुड़ गया किस ओर, कब सूरज सुबह का गदर की दीवार के पीछे, न जाने ।    क्या पता कब दिन ढला, कब शाम हो आई  नही है अब नही है एक भी पिछड़ा सिपाही आँधियों की फौज का बाकी   हमारे बीच अब तो एक पत्ता भी खड़कता है न हिलता है हवा का नाम भी तो हो  हमें अब आँधियों के शोर के बदले  मिली है हब्स की बेचैन ख़ामोशी    न जाने क्या हुआ सहसा, ठिठक कर, ...

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खेलूँगी कभी न होली

खेलूँगी कभी न होली उससे जो नहीं...

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सब बुझे दीपक जला लूं

सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम...

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पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है

पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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धूप सा तन दीप सी मैं

धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा...

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