कविताएँ

Dushyant kumar 275x153.jpg

आग जलती रहे

एक तीखी आँच ने इस जन्म का हर पल छुआ, आता हुआ दिन छुआ हाथों से गुजरता कल छुआ हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा, फूल-पत्ती, फल छुआ जो मुझे छूने चली हर उस हवा का आँचल छुआ ... प्रहर कोई भी नहीं बीता अछूता आग के संपर्क से दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में मैं उबलता रहा पानी-सा परे हर तर्क से एक चौथाई उमर यों खौलते बीती बिना अवकाश सुख कहाँ यों भाप बन-बन कर चुका, रीता, भटकता छानता आकाश आह! कैसा कठिन ......

Subhadra kumari chauhan 275x153.jpg

मेरा नया बचपन

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।  गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥    चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।  कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?    ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?  बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥    किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।  किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥    रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।  बड़े-बड़े...

Dharmavir bharti 275x153.jpg

आँगन

बरसों के बाद उसी सूने- आँगन में  जाकर चुपचाप खड़े होना  रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना  मन का कोना-कोना    कोने से- फिर उन्हीं सिसकियों का उठना  फिर आकर बाँहों में खो जाना  अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी  फिर गहरा सन्नाटा हो जाना  दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना,  कँपना, बेबस हो गिर जाना    रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना  मन को कोना-कोना  बरसों के बाद उसी सूने-से आँगन में  जाकर चुपचाप खड़े होना !...

Ramanath awasthi 275x153.jpg

सौ बातों की एक बात है

सौ बातों की एक बात है ।   रोज़ सवेरे रवि आता है दुनिया को दिन दे जाता है लेकिन जब तम इसे निगलता होती जग में किसे विकलता सुख के साथी तो अनगिन हैं लेकिन दुःख के बहुत कठिन हैं   सौ बातो की एक बात है |   अनगिन फूल नित्य खिलते हैं हम इनसे हँस-हँस मिलते हैं लेकिन जब ये मुरझाते हैं तब हम इन तक कब जाते हैं जब तक हममे साँस रहेगी तब तक दुनिया पास रहेगी   सौ बातों की एक बात है |   सुन्दरता पर सब मरते...

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

मधुर! बादल, और बादल, और बादल

मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।   गरज में पुस्र्षार्थ उठता, बरस में कस्र्णा उतरती उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया श्रृङ्गर करती बूँद-बूँद मचल उठी हैं, कृषक-बाल लुभा रहे हैं।। नेह! संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।   तड़ित की तह में समायी मूर्ति दृग झपका उठी है तार-तार कि धार तेरी, बोल जी के गा उठी हैं पंथियों से, पंछियों से नीड़ के स्र्ख जा रहे हैं मधुर! बादल, और...

Dushyant kumar 275x153.jpg

विदा के बाद प्रतीक्षा

परदे हटाकर करीने से रोशनदान खोलकर कमरे का फर्नीचर सजाकर और स्वागत के शब्दों को तोलकर टक टकी बाँधकर बाहर देखता हूँ और देखता रहता हूँ मैं।    सड़कों पर धूप चिलचिलाती है चिड़िया तक दिखायी नही देती पिघले तारकोल में हवा तक चिपक जाती है बहती बहती, किन्तु इस गर्मी के विषय में किसी से एक शब्द नही कहता हूँ मैं।    सिर्फ़ कल्पनाओं से सूखी और बंजर ज़मीन को खरोंचता हूँ जन्म लिया करता है जो ऐसे हालात में उनके...

Jaishankar prasad 275x153.jpg

तुम कनक किरन

तुम कनक किरन के अंतराल में लुक छिप कर चलते हो क्यों ?   नत मस्तक गवर् वहन करते यौवन के घन रस कन झरते हे लाज भरे सौंदर्य बता दो मौन बने रहते हो क्यों?   अधरों के मधुर कगारों में कल कल ध्वनि की गुंजारों में मधु सरिता सी यह हंसी तरल अपनी पीते रहते हो क्यों?   बेला विभ्रम की बीत चली रजनीगंधा की कली खिली अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल कलित हो यों छिपते हो क्यों?

Bashirbadr 275x153.jpg

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता। तुम मेरी ज़िन्दगी हो, ये सच है, ज़िन्दगी का मगर भरोसा क्या। जी बहुत चाहता है सच बोलें, क्या करें हौसला नहीं होता। वो चाँदनी का बदन खुशबुओं का साया है, बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है। तुम अभी शहर में क्या नए आए हो, रुक गए राह में हादसा देख कर। वो इत्रदान सा लहज़ा मेरे बुजुर्गों का, रची बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुशबू।

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विपदा से मेरी रक्षा करना

विपदा से मेरी रक्षा करना मेरी यह प्रार्थना नहीं, विपदा से मैं डरूँ नहीं, इतना ही करना।   दुख-ताप से व्यथित चित्त को भले न दे सको सान्त्वना मैं दुख पर पा सकूँ जय।   भले मेरी सहायता न जुटे अपना बल कभी न टूटे, जग में उठाता रहा क्षति और पाई सिर्फ़ वंचना तो भी मन में कभी न मानूँ क्षय।   तुम मेरी रक्षा करना यह मेरी नहीं प्रार्थना, पार हो सकूँ बस इतनी शक्ति चाहूँ।   मेरा भार हल्का कर भले न दे सको सान्त्वना...

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ब्राह्म मुर्हूत : स्वस्तिवाचन

जियो उस प्यार में जो मैं ने तुम्हें दिया है, उस दु:ख में नहीं, जिसे   बेझिझक मैं ने पिया है। उस गान में जियो जो मैं ने तुम्हें सुनाया है, उस आह में नहीं, जिसे   मैं ने तुम से छिपाया है। उस द्वार से गु जरो जो मैं ने तुम्हारे लिए खोला है, उस अन्धकार से नहीं   जिस की गहराई को बार-बार मैं ने तुम्हारी रक्षा की भावना से टटोला है। वह छादन तुम्हारा घर हो   जिस मैं असीसों से बुनता हूँ, बुनूँगा; वे...

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सब बुझे दीपक जला लूं

सब बुझे दीपक जला लूं घिर रहा तम...

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पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ है

पत्रोत्कंठित जीवन का विष बुझा हुआ...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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धूप सा तन दीप सी मैं

धूप सा तन दीप सी मैं!  उड़ रहा...

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