वे किसान की नयी बहू की आँखें

नहीं जानती जो अपने को खिली हुई-- विश्व-विभव से मिली हुई,-- नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को ...

Suryakant tripathi nirala 600x350.jpg

नहीं जानती जो अपने को खिली हुई--

विश्व-विभव से मिली हुई,--

नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को,--

नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,

वे किसान की नयी बहू की आँखें

ज्यों हरीतिमा में बैठे दो विहग बन्द कर पाँखें;

वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,

प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,

भीरु पकड़ जाने को हैं दुनियाँ के कर से--

बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से।

DISCUSSION

blog comments powered by Disqus

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image