हिमालय

खड़ा हिमालय बता रहा है डरो न आँधी पानी में, खड़े रहो अपने पथ पर सब कठिनाई तूफानी में ...

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सोहनलाल द्विवेदी

युग युग से है अपने पथ पर 
देखो कैसा खड़ा हिमालय! 
डिगता कभी न अपने प्रण से 
रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!  

जो जो भी बाधायें आईं 
उन सब से ही लड़ा हिमालय, 
इसीलिए तो दुनिया भर में 
हुआ सभी से बड़ा हिमालय!  

अगर न करता काम कभी कुछ 
रहता हरदम पड़ा हिमालय 
तो भारत के शीश चमकता 
नहीं मुकुट-सा जड़ा हिमालय!  

खड़ा हिमालय बता रहा है 
डरो न आँधी पानी में, 
खड़े रहो अपने पथ पर 
सब कठिनाई तूफानी में!  

डिगो न अपने प्रण से तो -- 
सब कुछ पा सकते हो प्यारे! 
तुम भी ऊँचे हो सकते हो 
छू सकते नभ के तारे!!  

अचल रहा जो अपने पथ पर 
लाख मुसीबत आने में, 
मिली सफलता जग में उसको 
जीने में मर जाने में!

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