कविताएँ

Maithilisharan gupt 275x153.jpg

सखि, वे मुझसे कहकर जाते

सखि, वे मुझसे कहकर जाते, कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?   मुझको बहुत उन्होंने माना फिर भी क्या पूरा पहचाना? मैंने मुख्य उसी को जाना जो वे मन में लाते। सखि, वे मुझसे कहकर जाते।   स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को, प्राणों के पण में, हमीं भेज देती हैं रण में - क्षात्र-धर्म के नाते  सखि, वे मुझसे कहकर जाते।   हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा, किसपर विफल गर्व अब जागा? जिसने अपनाया था, त्यागा;...

Dushyant kumar 275x153.jpg

हो गई है पीर पर्वत

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए   आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए   हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए   सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए   मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

Saahir ludhianavi 275x153.jpg

खूबसूरत मोड़

  चलो इक बार फिर से अज़नबी बन जाएँ हम दोनों न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखो दिलनवाज़ी की न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से न मेरे दिल की धड़कन लडखडाये मेरी बातों से न ज़ाहिर हो हमारी कशमकश का राज़ नज़रों से   तुम्हे भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से मुझे भी लोग कहते हैं की ये जलवे पराये हैं मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माजी की तुम्हारे साथ में गुजारी हुई रातों के साये हैं   तआरुफ़ रोग बन जाए तो उसको भूलना बेहतर...

Saahir ludhianavi 275x153.jpg

मायूस तो हूं वायदे से तेरे

मायूस तो हूं वायदे से तेरे, कुछ आस नहीं कुछ आस भी है. मैं अपने ख्यालों के सदके, तू पास नहीं और पास भी है.    दिल ने तो खुशी माँगी थी मगर, जो तूने दिया अच्छा ही दिया. जिस गम को तअल्लुक हो तुझसे, वह रास नहीं और रास भी है.   पलकों पे लरजते अश्कों में तसवीर झलकती है तेरी.  दीदार की प्यासी आँखों को, अब प्यास नहीं और प्यास भी है.

Saahir ludhianavi 275x153.jpg

मैंने जो गीत तेरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे

मैंने जो गीत तेरे प्यार की ख़ातिर लिक्खे  आज उन गीतों को बाज़ार में ले आया हूँ  आज दुकान पे नीलाम उठेगा उन का  तूने जिन गीतों पे रक्खी थी मुहब्बत की असास  आज चाँदी की तराज़ू में तुलेगी हर चीज़  मेरे अफ़कार मेरी शायरी मेरा एहसास    जो तेरी ज़ात से मनसूब थे उन गीतों को  मुफ़्लिसी जिन्स बनाने पे उतर आई है  भूक तेरे रुख़-ए-रन्गीं के फ़सानों के इवज़  चंद आशिया-ए-ज़रूरत की तमन्नाई है    देख इस अर्सागह-ए-मेहनत-ओ-सर्माया...

Saahir ludhianavi 275x153.jpg

ताजमहल

ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त[1]ही सही  तुझको इस वादी-ए-रंगीं[2]से अक़ीदत[3] ही सही   मेरी महबूब[4] कहीं और मिला कर मुझ से!    बज़्म-ए-शाही[5] में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी  सब्त[6] जिस राह में हों सतवत-ए-शाही[7] के निशाँ  उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी    मेरी महबूब! पस-ए-पर्दा-ए-तशहीर-ए-वफ़ा[8]    तू ने सतवत[9] के निशानों को तो देखा होता  मुर्दा शाहों के मक़ाबिर[10] से बहलने वाली  अपने तारीक[11]...

Subhadra kumari chauhan 275x153.jpg

झांसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,  बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,  गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,  दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।    चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,  बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,  खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।    कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,  लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,  नाना के सँग पढ़ती थी...

Saahir ludhianavi 275x153.jpg

जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ

  जिसे तू कुबूल कर ले वह अदा कहाँ से लाऊँ तेरे दिल को जो लुभाए वह सदा कहाँ से लाऊँ   मैं वो फूल हूँ कि जिसको गया हर कोई मसल के मेरी उम्र बह गई है मेरे आँसुओं में ढल के जो बहार बन के बरसे वह घटा कहाँ से लाऊँ   तुझे और की तमन्ना, मुझे तेरी आरजू है तेरे दिल में ग़म ही ग़म है मेरे दिल में तू ही तू है जो दिलों को चैन दे दे वह दवा कहाँ से लाऊँ   मेरी बेबसी है ज़ाहिर मेरी आहे बेअसर से कभी मौत भी जो मांगी तो न पाई उसके...

Ramanath awasthi 275x153.jpg

एक समान

डाल के रंग-बिरंगे फूल   राह के दुबले-पतले शूल   मुझे लगते सब एक समान!     न मैंने दुख से माँगी दया   न सुख ही मुझसे नाखुश गया   पुरानी दुनिया के भी बीच-   रहा मैं सदा नया का नया     धरा के ऊँचे-नीचे बोल   व्योम के चाँद-सूर्य अनमोल   मुझे लगते सब एक समान!     गगन के सजे-बजे बादल   नयन में सोया गंगाजल   चाँद से क्या कम प्यारा है   चाँद के माथे का काजल     ...

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं आये आवेश फिरे जाते हैं।   चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं साधें आराधनीय रही नहीं उठने,उठ पड़ने की बात रही साँसों से गीत बे-अनुपात रही   बागों में पंखनियाँ झूल रहीं कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे किसको अनुहार रही चुप साधे   दौड़ के विहार उठो अमित रंग तू ही `श्रीरंग' कि मत कर विलम्ब बँधी-सी पलकें मुँह खोल उठीं कितना रोका कि मौन बोल उठीं आहों का रथ माना...

सबसे लोकप्रिय

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

poet-image

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, ...

ad-image